Sunday, February 7, 2016

Round 3 - Team # 27 (Deepjoy & Rishav) #ftc1516



Metro
The marriage was on patchy path but no one had zeroed into the conclusion that she would take such a vicious step!
'Look at him, how shocked he is on her absence since morning, he hasn't even asked for her Mom, where would I find her if he does?' 
He said to his friend, who unsuccessfully tried to console him, the kid was unusually calm!
After a while when everyone was gone, a crooked smile gleamed on his face, standing in front of mirror, his eyes didn't show any guilt but pride. 
The phone buzzed.
"Hey stop questioning nobody suspects nothing! I am the victim." He chuckled. "I'm not! she has eloped how can I be the sinister" he laughed devilishly in real, "in the backyard" laughter continued.
After putting the cell, he turned towards his 6 years old, "You wanna say something? Is it about your mother? You wonder where she went,yes?"
"No" the boy kept looking at his father with the regular affection, the man abolished the eye contact.
"I wonder though, why mom looks so pale and why are you giving her piggyback since morning" The toddler said with supreme serenity.

Suburbs
अंधेरा घिर चुका था और कॉलेज अभी 8 किलोमीटर दूर था,वरुण ने लंबे की जगह छोटा सुनसान रास्ता लेना बेहतर समझा।
"तुझे आरती याद नही आती?"
वरुण- वो क्यों आएगी भला, वो तो गयी बहुत तेज बनती थी, सारे पर कतर दिए साली के। 
"सुना अमर को दिखी थी कहीं"
वरुण- अबे smack ले रखी होगी फिर से, कहाँ से आएगी वो "मर्दानी" हमने मिल के उसे खील खील किया था, याद नही तुझे!
कितना चीख रही थी यार! हह् हमे पकड़वाने चली थी! उसका भाई एक-दो पैकेट और ले लेता तो क्या चला जाता है की नही? जान तो बचा लेती ख़ुद की!
पीछे से कोई आवाज़ न आई।
तू बेकार न डर राहुल, मरे कब वापस आते हैं?"
 वरुण बोलता जाता अगर उसका phone न बजता। उसने देखा- Rahul Calling'
अचानक उसे ध्यान आया उसने तो राहुल को पीछे बिठाया ही नही था!
डरते डरते उसने पीछे देखा कोई नही था!
उसकी हवा ही रुक गयी बड़ी मुश्किल से bike को गिरने से बचाया। 
सांस थामे वो आगे बढ़ा ही था की सड़क के किनारे उसने एक आकृति देखी,वरुण ने कद-काठी का अनुमान लगते ही, bike की speed तेज कर दी,पर वो आकृति उसी वेग के साथ दौड़ी! 
"वरुण" एक गूंजती सर्द सी आवाज़ जैसे उसके दिमाग को चीरने लगी।
अपना नाम सुनकर और उस आकृति की शक्ल देख वरुण का कंट्रोल bike पर से हट गया, वो बुरी तरह लड़खड़ाते हुए गिर पड़ा। 
आरती सी दिख रही वो शक्ल विकृत होने लगी; ठीक वैसा जैसा वरुण ने तेजाब डालने के बाद बना दिया था। 
वरुण उठा और चारो ओर नज़र दौड़ाई पर उसे कोई न दिखा, बेतहाशा दौड़ा वो की सामने से एक साया आता नज़र आया!
"मुझे बचा लो वो मार डालेगी मुझे!"
तो मर जा- आवाज़ एकदम आरती की ही थी, वरुण को अपने शब्द याद आये- मर आरती मर!
"नही आरती मुझे जाने दे देख मैं अब वो सब छोड़ दूंगा किसी को drugs नही दूंगा, please!"
साया गायब था! 
वरुण को कुछ सूझा नही वो पागलों की तरह चीखने लगा!
"आSSS!! मुझे जाने दो!" 
वो फिर आगे भागा, चीख लगातार उसके गले से निकल रही थी, पर कोई सुनने वाला नही था!
वो हांफता-भागता होस्टल पहुंचा और सीधा अपने कमरे मे जाकर एक कोने मे बैठ गया।
अमर और राहुल उसके हर कर्म के साथी जानकारी मिलते ही उसके पास आये!
अबे तू पकड़वा देगा क्या" राहुल ने फटकारा
मैंने कहा था वो आ गयी है" अमर घबराते हुए बोला।
सब वहम है तुमलोगो का तु इसके पास बैठ मैं ताज़ा माल लेकर आता हूँ कश मार सारा नशा renew हो जायेगा, बासी माल लेकर बहक गया है ये"
राहुल बाहर corridor मे आया ही था की सामने कोने मे से कमर तक लंबे बालों वाली एक आकृति उसे गुज़रती दिखाई दी। वो भाग कर वहां पहुंचा पर कोई न था, वो जैसे ही मुड़ा एक जले चेहरे वाली लड़की पल भर के लिए नज़र आई, वो सकपका गया! तेज़ सांसो को किसी तरह काबू करते हुए वो अपने कमरे मे पहुंचा तो एक ladies perfume की गंध उसके नाक मे भर गयी, उसे आरती याद आई! ठीक यही cologne उसने महसूस की थी जब वो आरती के बेहद "क़रीब" गया था।
वाह perfume तो अच्छी लगाई है इसने" उसने कहा था।
"पसन्द आया" एक आवाज़ गूंजी; राहुल की धड़कने उसके कानो मे सुनाई पड़ने लगी!
उसने मुड़ कर देखा, सामने आरती मुस्कुराती खड़ी थी!
फटे कपड़े, उधड़े बदन और जगह-जगह से रिसता खून! धीरे-धीरे वो बदहाल शक्ल और बिगड़ गयी, आरती का पूरा चेहरा फफोलों से भर गया।
राहुल चीखा और टेबल पर रखी हनुमान की फोटो लेने के लिए आगे बढ़ा पर फोटो औंधे गिर पड़ी, जैसे हनुमान जी अपनी मौन स्वीकृति दे रहे हों आरती को! 
दरवाज़ा lock हो गया, अंदर बस राहुल की चीखें गूंजी, पहले तीव्र और फिर घुटी घुटी! बाहर दरवाज़े पर भीड़ जमा हो गयी, लाख कोशिशों के बावजूद दरवाज़ा नही खुला, और जब खुला तो दृश्य देख कर सबकी आँखें फैल गयीं!
अंदर राहुल की क्षत-विक्षत लाश पड़ी थी चेहरा बिल्कुल जला हुआ! अमर और वरुण के तो होश फाख्ता हुए पड़े थे! ये दृश्य उन्होंने पहले भी देखा था, अंतर बस इतना था की पिछली दफ़ा वो 'डर' थे और इस बार 'डरे'।
कुछ देर बाद वरुण के कमरे मे अमर बैठ कर अपनी गलती और उसके परिणाम को रो रहे थे।
रात के 1:30 बज रहे थे की तभी उनके दरवाज़े पर एक दस्तक हुई!
दोनो ने दरवाज़े की ओर देखा तो, 6 फुट दरवाज़े के ऊपर से एक चेहरा झांकता दिखा! 
दोनो की चीख उनके हलक मे ही अटक गयी!
नीचे दरार से आती रोशनी भी पैरों की परछाई से थम गयी!
धीरे-धीरे वो चेहरा दरवाज़े के अंदर दाखिल हुआ!- क्यों वरुण डर गए?" सर्द आवाज़ गूंजी!
"त त त्...तुम तो मर चुकी थी, मैंने तेज़ाब डाला था तेरे हलक मे!"
"उसी दर्द ने तो मुझे वापस तुम तक पहुंचाया है, उसी दर्द से वाकिफ़ कराने आयी हूँ मैं!"
"तो मार डाल न, डराती क्यों है" डर की पराकाष्ठा से फुफकारते हुए वरुण गुर्राया!
"डर?डर जानते हो क्या होता है?
सुनसान सड़क पे बेरोक दौड़ती तुम्हारी motorcycle! न आगे कहीं मुड़ने का रास्ता न पीछे,अलबत्ता कुछ देर से एक गाड़ी ज़रूर तुम्हारे पीछे जा रही है, उसकी headlight तुम अपने rear view mirror पर देख रहे हो, उसके engine की घरघराहट साफ तुम्हारे कानों मे पड़ रही है, की अचानक वही गाड़ी रफ़्तार पकड़ लेती है! घबराहट मे तुम break मारते हो की तभी रोशनी गायब आवाज़ भी ग़ायब! पीछे देखो! मुड़ने का कहीं कोई रास्ता नही कहाँ गयी तो गाड़ी?
डर लगा? लगेगा ही, पर क्या वो सच था? क्या करोगे तुम? भागोगे!
क्या भाग सकते अगर वो गाड़ी अपनी रफ़्तार तुमसे ज़्यादा कर लेती? नही
कुछ नही कर सकते तुम!
चलो माना वो भूत था, या भरम था! डर गए तुम!
पर मैं? मैं तो तुम्हे इंसान समझती थी, तुम मर्दों को! ऐसा डर तुमने मुझमे क्यों पैदा कर दिया की किसी सुनसान डगर से गुज़रने मे मुझे अपने जैसे इंसान से ही भय ज़्यादा लगे! किसी भरम या भूत से भी ज़्यादा जो दिखने मे कहीं ज़्यादा विकृत है, पर डर तो तुमसे ज़्यादा लगता है! ज़्यादा विकृत तुम दिखते हो, जबकी शक्ल सूरत तो वही है तुम्हारी दिन मे भी रात मे भी!
 फिर जो डर तुम अनजाने मे महसूस करो हम हर पल हर समय महसूस करती हैं, अंदाजा लगाती हैं! डरने के लिए सुनसान राहें या रात तक ज़रूरी नही हमें, ये होता है डर।
आरती की सर्द आवाज़ उनके कानों मे पिघले सीसे की तरह पड़ी।
अगले दिन दो और लाशें होस्टल से बरामद हुईं!

RURAL
का जादा मांगे हम तोसे?
एगो घर, उमा एक कोना,
जरा थोड़ा प्यार, कोई चांदी ना सोना,
तुम का दिए? कोना अंधार का और उमर भर का रोना!
उमर भर भी काहे बोलें!
सुरु ही कहाँ होने दिए तुम हमका!
कभी आगे आये तो भी का मांग लिया तोसे?
रत्ती भर पाठशाला और एक रत्ती भीतर चौखट मा
का का नाही बोले तुम!
कभी कमाल कभी "माल",
तोले हमका जाने कौन कौन काँटा मा!
चाहत रहे पढ़ना एक कालेज हम , पर चाहे टांगना तुम एगो खूंटी मा!
का थी या का है हमरा गलती?
उड़े की चाहत ही तो पाले रहे,
और दराती फेर दिए तुम ई पंखन मा!
हम भी बन सकत रहे तोहार टेक डंटा,
तुम लाद दिए इज्जत-संस्कार का बोझना।
फीर ले गए तुम्ही बईठा के डोलना,
तो काहे ना रखे किये रहे जइसन वादा?
और धर दिए रहे कई हाथ 
जो चाहे हम कछु बोलना।
एगो बात समझ मे ना आवत है हमका,
तोहार माइ भी हम,
बीवी भी हम, बेटी भी हम,
और डायन चुड़ैल भी हम!
डराते हो तुम, जबकी चाही तोका खुद डरना!
लेकीन
एतना भीसन बनाये रखे हो सकल
की डर से जादा हो गए डरावना!
कईसे कह लेत हो मरद खुद का?
ज़बान कांपती नाहि?
जो हाथ तोका सुख दिए!
ओका पर ही कालीख मलते हो
जौन नजर तोसे उम्मीद रखे,
उका मे धोखा बांध दिए!
अब बता डरे तो हम डरे किससे?
भूतन प्रेतन से की आपन अपन से?
हम काहे डरे लेकीन!
डर तो जाओगे तुम जब देखोगे,
जब दीखेगा असली डर का सकल,
कहाँ?
जरा झाँको आईना!!

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Rating - 136/200

Total Rating (3 Rounds) - 385/600 (64.17%)

Judges - Mayank Sharma, Mohit Trendster and Pankaj V. (Shaan)

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