Monday, June 17, 2013

Round 1 (Match # 11) - Sanjay Singh vs. Anubhav Rakesh


*) - हिंदी कामिक और भारतीय समाज का दृष्टिकोण

(# 11 - Sanjay Singh)

क्या अभी तक कामिक्से पढते रहते हो। अब तो तुम बडे हो गए हो।
 बकवास है ये। सिर्फ पैसो की बर्बादी। और ना जाने क्या-क्या।
जो लोग इस वक्त ये लेख पढ रहे है उन्हे अपनी जिंदगी मे अक्सर ऐसी या फिर इन से मिलती जुलती टिप्पणियां सुनने को मिली होगी। जो लोग बचपन से लेकर अब तक कामिक्सो के प्रति अपने जुनून को बरकरार रखे हुए है उन्होने काफी हिम्मत और धैर्य का परिचय दिया है। और सलाम है ऐसे सभी जुनूनियो को जिन्होंने परिवार, दोस्तो और समाज के तानो और डांटो की परवाह ना करते हुए भी भारतीय कामिक जगत के निर्माण और विकास मे अपना अमूल्य योगदान दिया है।

लेकिन कामिक्सो को लेकर भारतीय समाज इतना उत्साह हीन क्यों है? क्यों एक उम्र के बाद ऐसा लगने लगता है कि अब इन्हे पढना छोड देना चाहिए और उम्र के साथ नए शौक रखने चाहिए। क्यों कामिक्सो को सिर्फ बच्चो की ही चीज माना जाता है? इस लेख से पहले भी इस विषय पर और जगहों पर काफी चर्चा हो चुकी है। लेकिन अगर कोई उन चर्चाओं का गवाह ना बन पाया हो तो वो यहाँ इस विषय पर जानकारी हासिल कर सकता है। ज्यादा कुछ नया तो नही बता पाऊँगा लेकिन नए लोगो को वो चीजे भी नई ही लगेगी।

कामिक्से सिर्फ बच्चो की चीज:

भारत मे कामिक्सो को सिर्फ बच्चो से ही जोडा जाता है। अगर कोई युवा कामिक्सो मे दिलचस्पी रखता है तो उसका मजाक उडाया जाता है। लेकिन कामिक्से सिर्फ बच्चो तक ही सीमित नही होती। हर उम्र का व्यक्ति इन्हे पढ सकता है। बाहर (अमेरिका, जापान, युरोप) मे तो हर उम्र वर्ग के लोग कामिक्से पढते है। तो क्या वजह है कि भारत मे इसके साथ ऐसा बर्ताव होता है। इसकी वजह हमारा सामाजिक तंत्र है जिस ने अपने आप को काफी सिकोड रखा है। कामिक्सो का जिक्र करते है सबसे पहले दिमाग मे नाम आते है चाचा चौधरी और नागराज। चाचा चौधरी और साबू और बाकी डायमंड कामिक्स के किरदार ज्यादातर कार्टून है। और कार्टून बच्चो को पसंद आते है। इसलिए लोगो ने ये सोचना शुरु कर दिया कि कामिक्से सिर्फ बच्चो की ही चीजे है और अपनी इसी सोच को वो दूसरो पर भी थोपते रहते है। जहाँ तक नागराज और बाकी सुपर हीरोज की बात है तो बाकी दुनिया के लिए (कामिक फैन्स के अलावा) ये सब बकवास है। ये हकीकत मे संभव नही है और जो हकीकत मे नही है उस के बारे मे जानने से क्या फायदा। यहाँ लोगो की मानसिकता पर यथार्थ बहुत बुरी तरह से हावी है। भारतीय समाजिक व्यवस्था इतनी जटिल हो गई है कि कोई थोडी देर के लिए भी यथार्थ की दुनिया को छोडकर, काल्पनिक दुनिया मे नही जाना चाहता। यही वजह है कि कामिक्सो का शौक ज्यादातर लोग सिर्फ बचपन तक ही रख पाते है। और एक उम्र के बाद वो इस से पीछा छुडा लेते है।

कामिक्सो की बच्चो की चीज समझते हुए भी अक्सर अभिभावक अपने बच्चो को इस से दूर रखते है। और इसके पक्ष मे निम्न तर्क देते है:

पढाई पर बुरा असर:

जितने भी हिंदी कामिक फैन है उन सब ने एक बार तो किताब के बीच मे कामिक रख कर जरुर पढी होगी। तो अगर मैं ये कहूं कि हम ने एक बार ही सही लेकिन अपनी पढाई का कुछ भाग कामिक पढने मे खर्च कर दिया तो वो गलत ना होगा। और इसी एक तर्क को देकर अभिभावक अपने बच्चो को कामिक्सो से दूर रखते है। उनका कहना है कि कामिक्सो से बच्चो की पढाई प्रभावित होती है। दूसरे शब्दो मे कहा जाए तो वो लोग अपने बच्चो के हाथो मे सिर्फ कोर्स बुक्स ही देखना चाहते है। कम से कम स्कूल टाईम तक।

हिंसा और अश्लीलता:

एकशन और कामेडी। ये दो categories भारतीय कामिक्सो मे प्रमुख रही है। कामेडी मे भी एकशन का समावेश होता है लेकिन वो ज्यादा नही होता। एकशन कामिक्सो मे मार-धाड तो होती ही है। हारर कामिक्सो मे तो बहुत खून-खराबा भी होता है। साथ ही कभी-कभार कहानी की मांग पर कुछ ग्लैमरस सीन्स भी होते है। बडे लोग नही चाहते कि उनके बच्चे इन सब चीजो की संगत मे आए। इन दो चीजो को भी वो कामिक के खिलाफ इस्तेमाल करते है। और बच्चो को कामिक से दूर रखते है।

ये तो था भारतीय समाज या फिर कह लीजिए एक औसतन भारतीय का हिंदी कामिक के प्रति दृष्टिकोण। लेकिन अब देखते है उस नजरिए से जिसे भारतीय समाज नजरअंदाज कर के इस नतीजे पर पहुंचा है।

सिर्फ बच्चो की ही चीज नही है कामिक:

कामिक को सिर्फ बच्चो को चीज मानना, कामिक के साथ-साथ उसे बनाने वालो वालो की काबलियत का भी अपमान है। कामिक्से बच्चे नही बनाते। उन्हे बनाने वाले एक आम आदमी से ज्यादा कल्पना शक्ति और नजरिया रखते है। और जब ऐसे लोग कोई चीज बनाते है तो उसकी तुलना किसी साधारण वस्तु से नही की जा सकती। लोग कामिक्सो मे लिखी हुई कहानी को कोरी गप्प बताते है। लेकिन यही लोग अपने बच्चो को एक कहानी भी ढंग से नही सुना सकते। कुछ लोग कामिक्सो मे छपने वाले चित्रो का मजाक उडाते है। लेकिन यही लोग कागज पर पेंसिल से एक सीधी लकीर तक नही खींच सकते।

कामिक्से पढाई और ज्ञानवृद्धि मे सहायाक:

जो लोग कामिक्सो को पढाई के मार्ग मे बाधा मानते है उन्होने शायद अपने जीवन मे कभी कामिक्से पढी ही नही है। अगर एक बार पढ लेते तो कामिक्सो के विरोध मे ये तर्क कभी नही देते। कामिक पढने से हमारी पढने की क्षमता मे इजाफा होता है। साथ ही हमारी रचनात्मक सोच मे भी वृद्धि होती है। मैंने अक्सर पाया है कि मैं दूसरे लोगो से जल्दी पढ लेता हूँ। साथ ही हमे विज्ञान, भूगोल, इतिहास, समाजिक व्यवस्था का बहुत सा ज्ञान बहुत ही सरल तरीके से प्राप्त होता है। जितने भी कामिक प्रशंसक है वो इस बात से भली-भांति परिचित है। पहले कामिक प्रेमी पत्र के माध्यम से संपादकों तक अपने संदेश पहुंचाते थे और उसमे इस बात का जिक्र भी करते थे कि उनके अभिभावक कामिक्सो को पढाई के लिए खतरा नही मानते। साथ ही बहुत से गैर-हिंदी भाषी पाठक भी अपनी हिंदी को सुधारने के लिए लिए हिंदी कामिक्सो का सहारा लेते है।

कामिक्सो मे अक्सर प्रतियोगिताएँ भी देखने को मिलती है। कुछ ज्ञान पर आधारित होती है और कुछ कल्पनाशक्ति पर। दोनो ही तरह से ये प्रतियोगिताएँ हमारे लिए फायदेमंद होती है।

हिंसा और अश्लीलता। सिर्फ कामिक ही क्यों?:

जहाँ तक कामिक्सो को हिंसा और अश्लीलता परोसने का माध्यम कहने की बात है तो सिर्फ कामिक्से ही क्यों, मूवीस और टेलीविजिन सीरियल को भी कतारबद्ध किया जाना चाहिए। इस मामले मे देखा जाए तो अभिभावको का नजरिया पूरी तरह से भेद-भाव पूर्ण रहा है। कामिक के मामले मे एक बात पूरे विश्वास के साथ कही जा सकती है कि हिंदी कामिक्सो का मकसद सिर्फ मनोरंजन प्रदान करना ही नही, बल्कि साथ ही पाठको को नैतिक शिक्षा प्रदान करना भी रहा है। भारतीय कामिक्से एक संदेश के साथ खत्म होती है। कामिक के अंत मे सत्य और न्याय की जीत (जो कि अक्सर ज्यादातर हिंदी कामिक्सो मे दिखायी जाती है) पाठकों को आशावान और उर्जावान बनाती है। लेकिन फिल्मो और टी वी सीरियलस मे इस संदेश का आज कल कोई नामो निशान नही रह गया है। उनका मकसद सिर्फ पैसा कमाना रह गया है। चाहे इसके लिए कितनी भी अश्लीलता और हिंसा दिखानी पडे। या फिर नैतिक मूल्यो को ताक पर रख कर आदमी को निम्न से निम्नतर स्तर पर दिखाना पडे। (जैसा की टी वी सीरियल् को लंबा खीचने मे किया जाता है।) लेकिन लोगो को इन चीजो मे कोई बुराई नजर नही आती। उन्हे बुराई के दर्शन सिर्फ कामिक्सो मे ही होते है। और इसकी सबसे बडी वजह है हमारा संकीर्ण दृष्टिकोण।

दुनिया के बाकी देशो मे शायद इसी लिए कामिक सभी उम्र वर्ग के लोगो मे लोकप्रिय है क्योंकि वहाँ लोगो का नजरिया खुला है और वो हर चीज की अच्छाई और बुराई की परख करना हम से बेहतर जानते है। आज दुनिया भर मे कामिक्सो पर आधारित फिल्मे (स्पाईडर मैन, बैट मैन, आयरन मैन, इत्यादि) धूम मचा रही है। भारत मे भी लोग इन्हे बडे शौक से देखने जाते है। लेकिन जब बात हिंदी कामिक्सो की आती है तो वे नाक-भौं सिंकोड लेते है।

आज के इस तकनीकी युग मे (iphone, pc, video games) कामिक्सो को गुजरे हुए वक्त की चीज माना जाता है। हिंदी कामिक को प्रोत्साहित करने के लिए बहुत ही कम लोग रह गए है। लेकिन हम से भी ज्यादा उन्नत देशो मे आज भी कामिक्सो का चलन है और वो लोगो के लिए रोजगार और मनोरंजन दोनो उपलब्ध करा रही है। और भारत महान मे हिंदी कामिक अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करती नजर आ रही है। और इसकी वजह वही है। पाशचात्य संस्कृति का अनुसरण करना और घरेलू उत्पादो का तिरस्कार करना। हम उन लोगो के पीछे तो आँख बंद कर के चल देते है लेकिन कभी खुद की सोच को उन के जैसा बनाने का प्रयास नही करते। और जो लोग ऐसा प्रयास करते है उनका मजाक बनाया जाता है। जैसे हमारी हिंदी कामिक्से। शिक्षा के अच्छे स्तर तक पहुंचने के बावजूद भी भारतीय समाज की मानसिकता अभी भी वही की वही है। और इस से सिर्फ हिंदी कामिक्सो को ही नही बल्कि दूसरे घरेलू उत्पादो को भी नुकसान पहुंच रहा है।

संतोषजनक बात ये है कि अब पुराने हिंदी कामिक प्रेमी सोशल नेटवर्किंग साईटस के जरिए फिर से सक्रिय हो रहे है और अपने अनुभव नई पीढी के साथ बांटकर उन्हे भारत मे कामिक संस्कृति की जानकारी दे रहे है। भारत मे हिंदी कामिक के भविष्य पर जो सवाल बने हुए है उनका जवाब देने मे ये प्रयास काफी तो नही है लेकिन फिर भी इस से उम्मीदें एक बार फिर जाग उठी है। और उम्मीदों पर ही तो दुनिया कायम है।

Rating - 67/100


*) - Koshish

(# 54 – Anubhav Rakesh



AAP ki shuruat hai aur sambhavna jo bhi hai, delhi me hi kuch ho sakta hai delhi me kuch ho gaya to hamara atmavishwas badh jayega. isme kuch bhi fund wali cheez to hai nahi. Hum apne khud ke kharch se hi jansampark railly dharna ya koi bhi aandolan kar rahe hain desh ki haalat hi hume hausla deti hai khud se beeda uthane ka. Jab bilkul had ho jaaye to kya karoge. Bas apni nazro aura as paas had hi ho gayi thi jo ye kadam uthaya maine aura b santushti hai ki chote star par hi sahi par kuch kar to raha hun. Chote yogdano se hi
jinhe party me kuch vishwas hai wo judte hain, baaki sab dur bhagte hain. raat din na chain hai na neend bas jan sampark aur sakriya sadasya banao sadasyta abhiyan chalakar sath me logo ka vaishwas jeetne me bhi lage hain.  mai bhi jo bhi ward ki samasya hai use hum thoda bahut solve karne ki koshish kar rahe hain sayunkt roop se tabhi to log sochenge ki koi to sath de raha hai unka

badi party k gunde koshish karte hain lekin hum ab nirlajj ho chuke hain asal me
ye topi aam aadmi ki isse corrupt log bahut darne lage hain bahut badi taqat hai
yahan ward ki samsya ko hamne pakadna shuru kiya to ye un mahan logo ne bhi aisa shuru kar diya.
abhi kuch din pahle 1 mahila samiti hamare pas aakar boli ki unke mohalle se sharab bhatti hatwa kar kahi aur shift karwaya jaye hum unke sath gyapan saupne gaye ye dekhkar us wahan ka parshad bhi gaya aur kahne laga mai dekh lunga kya karna hai aap log rahne dijiye humne kaha ki hum to sath me gyapan denge hi aap bhi sahyog kar dijiye. 

gusse me wo mahatma ye kahkar nikal liye ki 2 crore de doge tab bhi nahi hatega ab to sharab bhatti dekh lena  unko to pata bhi nahi hota ki unka vote kahan ja raha hai gaon gaon ghumne se pata chala unka party ka naam nahi malum unhone sign dikhaya hath ka bole isi me dete hain pata nai kon sa party hai wo unhe vote karne k 1 din pahle kuch 50 50 rupye sath me desi sharab pakda dete hain kaam ban jata hai. Net bhi dodhari talwar hai masaledaar afwahen log pasand karte hai aur aag ki tarah felti hai kabi kabi kuch khabre sun kar hasi aati hai.padhe likhe berozgar logo ko sponser kiya jata hai ki wo sanyukt rup se hate campaign chalate rahe aur janta ka dhyan bantate rahe. Logo ki ye tendency hoti hai ki regional news aur apne shehar, state par zyada nazar rakhte hai to aese berozgar online pratinidhi region wise pages-posts-pics aadi banate hai aur aapas mey share karke volume bana dete hai jo dheere dheere fel jaati hai. Itni adhik matra me share baat ko log verify karne ki bhi zehmat nahi uthate. Log kahenge ye kaam to aap party bhi karti hai par aap party k pages aadi ki posts aur baaki jo mai baat kar raha hun un parties ki posts mey zameen aasmaan ka antar hai jo regular follower ko saaf pata chal jaayega.kuch apvad to hamesha har jagah ban hi jate hai to unki duhai dena theek nahi.

Ab yahi sangharsh hai aur karte jana hai.

 Rating - 30/100

Judge's Comment - The contrast in the 2 entries. I can tell one thing  both guys are super passionate.

Result – Sanjay Singh is now part of final 32 and the winner of the match by 37 points. Anubhav Rakesh moves to Parallel league

Judge - Mr. Mayank Sharma (Author)

1 comment: